TRAGEDY OF LIFE IS NOT DEATH, BUT WHAT WE LET INSIDE US DIE WHILE WE ARE ALIVE!!!

Saturday, April 8, 2023

एक कहानी कृषक की

एक कहानी कृषक की कहता है भारतवर्ष 
कभी बाढ़ कभी सुखा रोता है भारतवर्ष|

सच क्या है क्या झूठ 
पूछता है भारतवर्ष 
कभी पानी मांगते खेत 
कभी पानी में सड़ते खेत 
कोसता है भारतवर्ष|
धुप हो या हो छाँव
सर्दी हो या गर्मी 
अथक मेहनत की तस्वीर
दिखाता है भारतवर्ष |
फसल अच्छी हुई 
तो क्षण भर को हर्षाता भारतवर्ष|
पर फिर ऋणों के बोझ में दब
झुक जाता भारतवर्ष |

देखो, वो जाता कृषक 
वो है मेरी जान 
स्वेद उसकी, है मेरी पहचान,
इतराता है भारतवर्ष|
पर फिर उसकी 
सुखी हड्डियों के 
टूटते ढाँचे को देख 
शर्माता भारतवर्ष|

अमीरों को खिलाता कृषक 
उसके बागों को सजाता कृषक 
उसकी खुशफहमियों की
नींव बनता कृषक
और खुद को हरदम बहलाता कृषक 
बताता है भारतवर्ष|
खुद भूखा तड़पता कृषक 
पुत्र हेतु दूध मांगता कृषक 
हर दुसरे रोज भूखा सो जाता कृषक 
अपनी किस्मत को कोसता कराहता कृषक 
कैसे जी रह वो 
छुपता है भारतवर्ष|

दो हाथ धोती में 
अपना तन छुपाता कृषक 
अर्धनग्न नयी तस्वीर 
ढूंढता सजाता कृषक 
खुद के दर्द को 
खेतों में दफनाता कृषक|
पर अपने अस्थि-वज्र से 
रोज सवेरे बनाता है वो भारतवर्ष |
यही है मेरी अमर कहानी 
बेशर्म हो सुनाता भारतवर्ष||
  

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