TRAGEDY OF LIFE IS NOT DEATH, BUT WHAT WE LET INSIDE US DIE WHILE WE ARE ALIVE!!!

Monday, March 21, 2011

किसी की ज़िन्दगी से दो पल चुराए मैंने


किसी की जिंदगी से
दो पल चुराए मैंने,
जी लिए
जब तक जी सके थे,
कुछ यादें, कुछ फरियादें...
रह गयीं बाकी...
सपने जो देखे
बाकी रह गए थे!

ऐसा लगा
मानों हंसी पल दो मिले थे
जिंदगी जीने के क्षण
जो मिले थे
बीत गए वो...
तन्हाई रह गयी बाकि
बस बच गए
राहों में ग़म जो मिले थे!

चलते रहे हम,
गम का क्या ठिकाना,
अपनी तो राह यही,
बस चलते है जाना
मिलेगा कोई साथी,
कभी छूटेगा कोई परवाना
पर किसी की परवाह नहीं ...
युहीं बढ़ता रहेगा ये दीवाना!

...जिंदगी ये जो मुझे मिली,
कोई शिकवा नहीं,
तुने गम क्यों दिया.
कुछ गम है
और मिली कुछ ख़ुशी 
ज़िन्दगी जीने का तुने ये ढंग क्यों दिया?

कभी कोई राह दिखतीं नहीं...
कभी कहीं
आशा का सूरज जलता है...
कभी ख़ुशी का पहाड़
दीखता नज़र,
कभी गम का सागर
तूफान लाता है!

बस इतना मुझे याद रहा है अब तो ...

ज़िन्दगी जीने के
दो तरीके बताये,
कभी मिली ख़ुशी
कभी गम का सागर लहराए...
आंसुओं का तो रह गया
आना जाना
इंतज़ार रहा अब तो...
कब कब ख़ुशी आये...
कब कब ख़ुशी आये...

२१वी सदी की बेबसी...

२१वी सदी है,
क्या दिन हैं,
क्या ज़माना है,
आधुनिक युग है,
बड़ा शानदार फ़साना है|

बहुत ही खुश हूँ  आज,
देखकर आदमी के
क़दमों को... 
उसकी तरक्की को...
बड़ा ही अभिमान आता है 
आज...
की आज 
वो सबकुछ बना सकता है|

बस इतना-सा गम 
कहीं बच गया है, 
की अभी भी 
बेबस बेसहारा कितना है वो...
लाख चाहे पर,
आदमी को इन्सान नहीं बना पता है|

Thursday, November 18, 2010

कुललक्ष्मी और कुलटा

एक बार की बात है...
बगल वाले घर से एक आवाज आई...
जब बहु ने ख़ुशी ख़ुशी
गर्भ की खबर सुनाई...
सासु मान ने वापस
एक जोरदार आवाज  लगायी|
वाह वाह... कुललक्ष्मी..

लेकिन क्या तुमने ultrasound कराई...
 मत दिखाना मुझे दुबारा चेहरा
अगर घर में खुद सी कुलटा एक और लाई||

Thursday, September 2, 2010

प्रश्न: किसी योद्धा की मृत्यु पर...about my favorite hero...karn!

न जाने क्यों आज,
मन करता है रोने को,
किसी अप्रतिम वीर की
मृत्यु पर शोकाकुल होने को|

क्यों धरा ऐसे वीरों को जनमती है?
जनमती है तो खैर ठीक है,
भाग्य की देवी, फिर क्यों उनको
छलती है,प्राणों को उनके हरती है?

क्यों जनम पाते वीर
क्या बस मरने को,
क्यों सर्वगुण संपन्न होते वे,
क्या भाग्य द्वारा बस छलने को?

क्यों भीषण तेज वो पाते हैं?
क्यों दानी वीर प्रतापी कहलाते हैं?
एहन तक तो ठीक है, पर धरा से छीन
गौरव उसका क्यों वे सिधारते हैं?

प्रश्न ये मन में घूम रहे
अंत:करण को हैं ये चूम रहे
नियति खेल ऐसा क्यों रचती है
एक नहीं हर वीर की दास्ताँ यही कहती है |

जन्म से लेकर मृत्यु तक,
ब्रह्मचर्य से सन्यास तक,
घर से लेकर समाज तक,
गृहस्थ से परमार्थ तक|

हाय! कैसी है यह विडम्बना,
निर्दयी नियति सौभाग्य उनका हरती है,
रहे जो योग्य सदा फूलों के,
मार्ग में कांटे उनके बिखेरती है|

हाय! कैसा यह नियम ब्रह्माण्ड में
व्याप्त हो रहा...आखिर क्यों?
हर वीर की ऐसी ही गति
रही है...ये ब्रह्म बताओ आखिर क्यों?

संबल जो धर्मं का, मनुष्यता का, धरा का,
सहारा दीनों का, विश्वास मित्रों का,
क्यों ऐसे गुनी ही छलते हैं,
क्यों ऐसे सत्यागामी प्रतापी ही मरते हैं,
समाज भी ऐसों को तजता है,
और सहारा पापियों का बनता है!

प्रश्न नियति से आज मैं करता हूँ,
सवाल समाज पर आज मैं उठाता हूँ ,
कब तक...आखिर कब तक और क्यों,
सिलसिला यही चलता रहेगा,
पाप समाज में आखिर कब तक बढ़ता रहेगा?

कब धरा पर वीर कोई  
         समर्थन समाज का पायेगा|
और ले सहारा नियति का,
         उद्धार राष्ट्र का कर पायेगा||