२१वी सदी है,
क्या दिन हैं,
क्या ज़माना है,
आधुनिक युग है,
बड़ा शानदार फ़साना है|
बहुत ही खुश हूँ आज,
देखकर आदमी के
क़दमों को...
उसकी तरक्की को...
बड़ा ही अभिमान आता है
आज...
की आज
वो सबकुछ बना सकता है|
बस इतना-सा गम
कहीं बच गया है,
की अभी भी
बेबस बेसहारा कितना है वो...
लाख चाहे पर,
आदमी को इन्सान नहीं बना पता है|
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